Thursday 29 December 2011

स्वरूप

अजब है जीवन अजब है रूप
हर दिन नई सीख,नया ही स्वरूप
आज जो सोचा,वो था कुछ अलग
पर क्या था न कहने की चाह है अब।
हजारों सवालों का न कोई जवाब
हर जवाब में छुपा इक नया ही सवाल
बेचारियत पे इनकी है किसको रहम
खुद ही उठते गिरते लड़खड़ाते कदम
कभी चाहे उड़ना कभी बस मिटना
जीवन के रूपों की न बात कोई करना।
हैं पल में ये सुंदर तो पल में कुरूप
जीवन समझने की न चाह कभी रखना
हर दिन हर पल,हर साँस है नई
हर साँस में बदलता है जीवन का रूप।
है सभी का ये जीवन,फिर भी है क्यों अलग
हर शख़्स यहाँ रखता है,अनेकों स्वरूप।

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